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सफर - मौत से मौत तक….(ep-18)

नंदू अंकल और यमराज दोनो शोरूम के पास पहुंचे।

नंदू अंकल और यमराज जब शोरूम पहुंचे तो नंदू वहाँ अलग अलग ऑटो के रेट पता कर रहा था। करीब बीस साल की बचत के भरोसे वो इधर आया था। दिन रात एक करके समीर के सारे खर्चे उठाकर भी उसने रिक्शा चलाकर करीब करीब एक ऑटो को बिना उधारी के खरीदने लायक पैसे जोड़ दिए थे, और अब उसके पैरों में इतनी ताकत नही थी कि वजन के साथ रिक्शे को खींच सके, आज पहली बार कुछ अपने लिए करने गया था नन्दू।

यमराज और नंदू अंकल नंदू को देख रहे थे, नंदू अंकल तो अंजाम जानता था, की आज क्या होने वाला है, लेकिन यमराज पूरी तरह उत्सुक था देखने के लिए कि रिक्शे वाला ऑटो चलाकर जाएगा कैसे,

"आपको ऑटो चलानी आती है क्या अंकल" यमराज ने पूछा ही था कि यही सवाल दुकानदार ने भी नंदू से पूछ लिया।

"क्या आप चला लेते है ऑटो?" दुकानदार ने पूछा।

नंदू अंकल ने यमराज से कहा- "इस सवाल का जवाब असली नंदू से ही सुन लो"

यमराज और नंदू अंकल दोनो का ध्यान नंदू की तरफ गया

नंदू हंसते हुए बोला- "ऑटो चलाने की बात कर रहे हो, कभी हैंडल पकड़कर बैठा भी नही आगे वाली शीट पर….लेकिन मेरा एक दोस्त है, उसे भी नही आती थी ऑटो चलानी, लेकिन पिछले महीने उसे खरीदी और एक महीने में  उस्ताज हो गया वो"

"तो अभी घर कैसे लेकर जाओगे" दुकानदार ने पूछा।

"पहले खरीदने तो दो, ले जाने की बात बाद कि है" नंदू ने कहा।

"खरीदने का क्या है जनाब, पैसे दो और कागजी कार्यवाही करो और ले जाओ, दस मिनट में गाड़ी आपकी" दुकानदार बोला।

"पैसा फेंको तमाशा देखो वाला हिसाब होता तो एक अच्छी और सुंदर कार के शोरूम में होता, मेरे पास ज्यादा पैसे नही है, इसलिए रेट देखना पड़ेगा" नंदू बोला।

"अरे भाईसाहब….आपको अच्छे से जानता हूँ मैं…. पैसे की फिक्र आप मत कीजिये, जितने पैसे है उतने दे दीजिए बाकी किश्तों पर दे देना"दुकानदार ने कहा।

"सोचा तो था किश्त के चक्कर मे ना ही पढू तो ठीक है….अच्छा वो उधर से तीसरे नम्बर की ऑटो बड़ी सुंदर लग रही है न! " नंदू ने कहा।

यमराज और नंदू अंकल दोनो उस ऑटो को चारों तरफ से देखने लगे, जैसे पसंद नंदू ने नही इन दोनों ने करना होगा।

यमराज ने नंदू अंकल को टोकते हुए कहा- "आप क्यो देख रहे हो….आपने तो उस दिन देखकर ही खरीदा होगा ना"

"खरीदना तो छोड़ो देखने का भी समय नही मिला….अभी देखो मेरे जेब मे फोन की घंटी बजेगी" नंदू अंकल बोले।

"आपके जेब मे फोन….लेकिन कैसे" यमराज ने पूछा।

" तभी तो बोलता हूँ कहानी को बीच बीच मे छोड़कर नही पढ़ना चाहिए, ना ही किताब के दो पन्ने एक साथ पलटाने चाहिए, मैं तो कहता हूँ, टीवी में अगर किसी फिल्म के दौरान कोई ब्रेक आ जाये तो चेनल भी सोच समझकर बदलना चाहिए….तुमने जो छलांग लगाई है उसकी वजह से समीर को साइकिल दिलाकर मेरे लिए ऑटो लेने आ गए हम, और इन दो घटनाओं के बीच छह सात साल का गैप आ गया, इसी बीच बहुत कुछ बदल गया था।
समीर पढ़ने होस्टल चले गया। लेकिन मेरे पास फोन नही था तो उसे रोज पड़ोस में फोन करना पड़ता था, और मेरे से बात बिना किये वो रह नही सकता था, और मैं तो बिल्कुल नही रह सकता था। इसलिए उसके कहने पर एक छोटा सा जेब मे रखने वाला टेलीफोन ले लिया था, "  नंदू अंकल ने बताया।

"लेकिन अभी फोन किसका आने वाला है" यमराज ने पूछा।

"थोड़ा सब्र तो कर लो यार" कहते हुए नंदू अंकल ऑटो के पहली शीट में हैंडल को पकड़के बैठ गया।

नंदू अंकल ने खुशी जाहिर करते हुए यमराज से कहा- "आज पहली बार मैं ऐसे बैठ रहा हूँ,जीते जी कभी मौका नही मिला"

यमराज कोई जवाब देता उससे पहले नंदू के जेब मे फोन जोर जोर से बजने लगा
"ट्रिन ट्रिन……ट्रिन ट्रिन……"

नंदू ने जेब से फोन निकालकर कान पर लगाया, लेकिन ट्रिन ट्रिन चालू थी, और यही गलती बहुत बार करता था नंदू, उठाना भूल जाता था,

"ओह….बटन दबाना तो भूल गया" कहते हुए नंदू ने बटन दबाया। और बोला - "हेलोव……."

दूसरी तरफ से राजू ने फोन पर कहा- "और बड़े भाई कहां हो आज, आये नही क्या बात"

"अरे राजू….वो बात ये है ना, पिछले महीने तू लाया था अपने लिए ऑटो, आज मैं आ गया……अब हम दोनों ऑटो में सवारी ले जाएंगे" नंदू ने कहा।

"अरे वाह….बहुत बहुत बधाई आपको….ले लिया, या अभी ले रहे हो" राजू बोला।

"बस अभी तो मोल भाव कर रहा,  उसी दुकान पर गया हूँ, जहां से तूने ली थी, तूने कितने में ली थी" नंदू ने कहा।

"आपने अगर वहाँ जाना था तो मुझे भी बोल देते मैं भी आ जाता…." राजू ने कहा।

"अभी कौन सा खरीद लिया है, आना तो तुझे पड़ेगा ही, मैं कौन सा चलाना जानता हूँ, मेरे घर तक ले जाएगा और फिर मुझे चलाना भी सिखाएगा, आ जा जल्दी से" नंदू बोला।

"लेकिन अपनी ऑटो को कौन ले जाएगा फिर, मैं आपकी ऑटो ले चलूंगा तो" राजू बोला।

"अरे एक चक्कर और आ जाऊंगा, अपने रिक्शे में, मैं भी तो अपना रिक्शा लेकर आया हूँ, चल बहाने ना बना, आ जा चुपचाप" नंदू ने आर्डर देते हुए कहा।

"चलो ठीक है, आ रहा हूँ,फोन रखता हूँ, बस दस मिनट में पहुंचता हूँ।" राजू ने कहा।

नंदू बहुत खुश था आज, उसने समीर को सरप्राइज देना था , एक महीने बाद समीर ने घर आना था, तब तक नंदू ऑटो चलाना सीखकर उसे चौकाने की सोच रहा था। नंदू ने तो ये भी सोच लिया था कि इस बार उसे स्टेशन से लेने के लिए रिक्शा नही ऑटो लेकर जाएगा, वो भी अपनी खुद की ऑटो, नंदू सोचकर ही फुले नही समा रहा था। एक तरह से सपने में खो गया। उसे  उस पल का इंतजार था जब वो ऑटो खरीदकर अपने बेटे को लेने जाएगा

उस  समीर आने वाला था और समीर ने नंदू को फोन किया और बताया कि वो स्टेशन पहुँचने वाला है, आप लेने आ जाओ, समीर जानता था कि पापा रिक्शे से आएंगे तो एक घंटा लगेगा, इसलिए उसने स्टेशन पहुँचने से एक घंटे पहले फोन किया।
  "पापा मैं एक घंटे में स्टेशन पहुंच जाऊँगा, तब तक आप घर से निकल जाईये, मेरे पहुँचने तक आप भी पहुंच जाएंगे, दोनो को इन्तजार नही करना पड़ेगा।" समीर ने कहा।

"ठीक है बेटा" नंदू ने कहा और फोन काट दिया।

अब नंदू ने बाहर खड़ी ऑटो को स्टार्ट किया और स्टेशन की तरफ निकल पड़ा। ये जानते हुए भी की ऑटो से पच्चीस तीस मिनट लगेंगे और उसे इंतजार करना पड़ेगा। लेकिन समीर का इंतजार करना आज अच्छा लगेगा, क्योकि समीर छह महीने बाद आ रहा था उससे मिलने की बेताबी थी, अपना फूल से बच्चा भले ही लंबाई में नंदू से बड़ा हो चुका था, लेकिन नंदू के लिए वो आज भी बच्चा ही था।

नंदू स्टेशन पहुँचा और आधे घंटे बाद नंदू आया, ट्रेन से किसी हीरो की तरह उतर रहा था, एक बैग हाथ मे, एक पीठ में लटकाया था। नंदू ने उसका बैग पकड़ लिया और आगे आगे चलने लगा।

"पापा….मैं आपकी सवारी नही आपका बेटा हूँ, बैग लेकर इतनी जल्दी जल्दी क्यो भाग रहे हो….मैं कौन सा किसी और के रिक्शे में बैठूंगा,आपके ही रिक्शे में बैठूंगा…." समीर ने कहा।

नंदू मुस्कराते हुए आगे बढ़ता गया, वो सरप्राइज खराब नही करना चाहता था सच बताकर की वो रिक्शे में नही ऑटो में आया है।

समीर नजर घुमा रहा था, मगर पापा का रिक्शा नजर नही आया।

"पापाजी, रिक्शा कहाँ है आपकी" समीर ने प्यार से पूछा।

तभी नंदू एक ऑटो के बगल में जाकर रूके गया और उस ऑटो के शीट में बैग डाल दिया।

"अरे पापा, रिक्शा खराब हुआ है क्या….ऑटो बुक करके आ गए मुझे लेने।" समीर बोला।

"नही रिक्शा तो ठीक ही है, लेकिन मैं सोच रहा था कि उसकी भी उम्र हो गयी है, उसे आराम देना चाहिए। नंदू बोला।

"चलो, अच्छा ही किया कि आप ऑटो के आ गए, वैसे भी रिक्शे में सफर करना अजीब लगता था, लेकिन ड्राइवर कहाँ है" समीर ने पूछा।

"ड्राइवर की क्या जरूरत, मैं हूँ ना…."  नंदू ने कहा।

इस बात पर समीर हँसते हुए बोला- "हँहँहँहँ……ऑटो और आप…. आज मजाक के मूड में लग रहे हो आप…"

नंदू भी उसकी नादान हँसी को सुनकर हँस पड़ा, और खुद पर गर्वित होकर आगे के शीट में बैठा और  समीर को पीछे बैठने को कहा और ऑटो स्टार्ट करने लगा।

समीर को आश्चर्य हुआ, वो पीछे की शीट में बैठ गया और है, और पापा को देखने लगा, और पूछा- "आपने कब सीखी, और किसकी है ये ऑटो….लग तो नई रही है"

"तेरे बाप की है, और नई ली है तो नई ही होगी, नंदू बोला।

"लेकिन पापा, आपने मुझे बताया क्यो नही, आप हमेशा सरप्राइज देकर खुश कर देते हो मुझे, उस दिन सायकिल लाकर भी अचानक खुश कर दिया, और आज ऑटो ले लिया, मजा ही आ गया" समीर बोला।

"ट्रिन ट्रिन……. ट्रिन ट्रिन" नंदू के जेब मे एक बार फिर से फोन की घंटी बजी, और नंदू सपने से जाग गया, वो अब भी ऑटो की दुकान में खड़ा था और राजू के आने का इंतजार कर रहा था।

"हेलो..…." नंदू ने कहा।

"नमस्कार पापाजी! " समीर की आवाज थी।

"अरे समीर बेटा….कैसा है , और आज दिन में कैसे किया फोन, शाम को किसी के जन्मदिन में जाना है क्या" नंदू में कहा।

अक्सर जब शाम को किसी पार्टी में शामिल होना होता था तो समीर दिन में बात कर लेता था, क्योकि वो जानता था पापा को नींद नही आएगी बिना उससे बात किये।

"नही पापा! ऐसा कुछ नही है, शाम को फिर कर लूंगा, लेकिन अभी कोई खास बात करनी है आपसे" समीर बोला।

"अच्छा बोल ना बेटा, क्या खास बात है," नंदू ने सवाल किया।

समीर की आवाज में भारीपन सा था, और एक हिचक थी, समीर ने हिचकिचाते हुए कहा- "वो पापा….वो मुझे थोड़े पैसो की जरूरत थी"

"अच्छा….तो इतनी चिंता क्यो कर रहा, पैसे की ही जरूरत होगी ना….चल ठीक है शाम तक हजार रुपये भिजवा दूँगा तेरे बैंक खाते है, कल जाकर निकाल लेना" नंदू ने कहा।

"नही पापा, इस बार हजार रुपये की जरूरत नही है" समीर बोला।

"कोई बात नही, जितने बचेंगे बाद में काम आएंगे" नंदू ने कहा।

"नही पापा आप समझ नही रहे है, सिर्फ हजार से कुछ भी नही होगा, मैंने आगे की पढ़ाई के लिए सोचा है, और मैं एलएलबी करना चाहता हूँ।" समीर ने कहा।

"ये अलअलबी क्या हुआ" नंदू ने कहा।

"पापा, वकील की पढ़ाई, मैं वकील की पढ़ाई करके वकील बनना चाहता हूँ, और उसके लिए मुझे पैसो की जरूरत है" समीर बोला।

"कितने पैसे बेटा" नंदू ने सवाल किया।

"यही कुछ अस्सी नब्बे हजार रुपये" समीर ने सहमे स्वर में  कहा।

नंदू ने मन ही मन सोचा कि उसके पास तो पैंतालीस हजार रुपये है, उसके उपर पेंतालिश और रखो तब जाकर नब्बे होंगे

"कब तक चाहिए….मतलब कुछ दिन बाद चाहिए होंगे" नंदू ने सवाल किया।

"अगले हफ्ते फार्म भरके जमा हो जाएंगे, इसलिए हफ्ते से पहले पहले, अगर कहीं से इंतजाम हो सकता है तब ही करूँगा… वरना दोस्तो को बोल देता हूँ कि मेरे फार्म मत भरना" समीर बोला।

"कोई बात नही बेटा….तू फार्म भर ले….मैं कल शाम तक भेजता हूँ कहीं से इंतजाम करके" नंदू ने कह तो दिया लेकिन फोन कटने के बाद बहुत परेशान हो गया वो,
उसने ऑटो भी नही खरीदी और बाहर की तरफ चले आया।

"अरे भाई-साहब….कहाँ जा रहे हो, ऑटो खरीदना है या नही" दुकानदार ने आवाज दी।

लेकिन नंदू भला ऑटो कैसे लेता, उसका बेटा समीर वकील बनने के सपने देख रहा था, और उसको पैसो की जरूरत थी।

नंदू अंकल और यमराज भी ऑटो से उतरे और भागकर नंदू ले पीछे पीछे जाने लगे….

नंदू अभी बाहर ही निकला था कि राजू भी आ पहुंचा,

"अरे नंदू भैया,…. कहते हुए राजू ने ऑटो रोकी और ऑटो से बाहर उतरा।

"अरे तुम आ गए" नंदू ने सवाल किया।

"अब आपने बुलाया था तो आना ही था ना….लेकिन क्या बात हुई, कहाँ जा रहे थे।" राजु ने सवाल किया

राजू नंदू का अच्छा दोस्त था, इसलिए नंदू ने उसको अपनी सारी समस्या बतायी  और कोई समाधान ढूंढने की विनती की।

राजू ने कुछ सोचा और कहा- "आप बैठो मेरे ऑटो,में और मेरे साथ चलो"

"लेकिन कहाँ" नंदू ने पूछा।

"अरे चलो तो सही…." राजू बोला।

"लेकिन मेरा रिक्शा…." नंदू ने कहा।

"कोई नही खायेगा आपके रिक्शे को,चलो मेरे साथ….वापसी में यही छोड़ दूंगा आपको"राजू ने कहा।

नंदू राजू के ऑटो में बैठ गया और इससे पहले की राजू ऑटो स्टार्ट करता, यमराज और नंदू अंकल भी ऑटो मे ही घुस गए।

"कहाँ लेकर जाएगा अपका दोस्त आपको "यमराजने नंदू अंकल से पूछा।

"जहां मैंने सोचा भी नही था, वहाँ ले जाएगा,अब तुम भी मत सोचो, जब साथ जा ही रहे है तो देख लेना" नंदू अंकल ने यमराज से कहा।

"लेकिन फिर भी, अगर बता देते तो ऑटो के धक्के नही खाने पढते मुझे, मैं सीधे वही चले जाता" यमराज बोला

"इसी डर से तो तुम्हे नही बता रहै हूँ , और सोचो जब राजू ने उस दिन मुझे नही बताया तो मैं क्यो बताऊ" नंदू बोला।

"ठीक है ठीक है,ज्यादा भाव मत खाओ, देख लूँगा आपको भी, मतलब तो पड़ेगा कभी मुझसे भी, तब मैं भी आनाकानी करूँगा" यमराज ने कहा।

नंदू ने उसकी बात हँसी में टाल दी।
राजू भी नौसिखिया ऑटोवाला था, मंजिल पर पहुँचकर उसने अचानक ही ब्रेक लगाया कि नंदू अंकल बाहर गिर पड़े,

यमराज हंसते हुए बाहर आया और नंदू अंकल की तरफ देखकर बोला- "अंकल जी, आपके दोस्त ने तो आपके भाव ही गिरा दिए"

"मुझे ही गिरा दिया….भाव गया भाड़ में" नंदू अंकल उठते हुए बोला।

राजू और नंदू भी ऑटो से उतरे

"ये कहाँ ये आया यार" नंदू ने सवाल किया।

चल मेरे साथ बोलकर राजू आगे आगे चल दिया।

नंदू अंकल और यमराज भी उस जगह को आश्चर्य से देख रहे थे।

कहानी जारी है….

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6 Comments

Khan sss

29-Nov-2021 07:24 PM

Good

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🤫

28-Sep-2021 06:56 PM

ऐसी कौन सी जगह लेकर गया राजू नंदू को जो यमराज भिं चौंक पड़ा... वेरी इंट्रेस्टिंग

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Shalini Sharma

22-Sep-2021 11:51 PM

Beautiful

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